हर रिश्तें को वो समझती है,
बाखूबी उन्हें निभाती है।
दर्द कितने भी हो उसको,
फिर भी वो मुस्कुराती है।
मां किसी की,और बहन किसी की,
किसी की पत्नी बनकर साथ निभाती है।
वो नारी है देवीस्वारुप ।
जो दूसरों की खातिर,
अपना जीवन भी वारी है।।
पर विडम्बना है इस समाज की,
है सम्मान नहीं उसके लाज की।
समझते चीज उसे भोग-विलास की,
कद्र नहीं उसके अहसास की ।
करते झूठी बातें सर्वाधिकार की,
फिकर नहीं उसके ज्जबात की ,
और बात करते हैं नारी उत्थान की ।
नियत साफ़ नहीं इंसान की,
फिर दोष देते उसके परिधान की ।
समाज में बराबर दर्जे की,
वो पूरी हकदार हैं।
ये कोई अहसान नहीं,
यह उसका अधिकार है।
जाने कब हम समझेंगे,
नारी इस समाज की आधार है।
ये समाज शायद भूल गया ,
जरुरत पड़ने पर,
वो दुर्गा चंडी की अवतार भी है ।।
2020© AnuRag
Wah bahat acha🙌🏻🙏🏻
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Dhanyawad Apka 🙏🙏
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Awesome 👌
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Thank you Dulcy.
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Welcome 😊
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Amazing!
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Thank you Akshita.
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Very lovely❣
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Thank you 🙏
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बहुत सुन्दर👌👌
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Dhanyawad 🙏
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Bahut sundar 👌
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Thank you Era.
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😊😊
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सुंदर भावनात्मक रिश्ता।💕🌹🤗
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Thank you so much 😊
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Welcome Anurag.
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Sundar abhivyakti. Navaratri ke liye perfect.
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Thank you mam.
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वाह प्रसाद जी की “नारी तुम केवल श्रद्धा हो ” की याद दिला दी ।
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Thank you so much sir.🙏
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अतिसुंदर एवं सत्य
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धन्यवाद् 🙏
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बहुत बढ़िया
शानदार
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धन्यवाद् 🙏
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Bhut sundar g
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Dhanywad ji 🙏
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