
आज चांद नहीं निकला,
तू छत पे नहीं आयी क्या?
चलने लगी ठंडी पुरवाई,
तूने ज़ुल्फे लहरायी क्या?
ये रात इतनी खामोश है,
आज फिर तेरी आंखें नम हो आयी क्या?
हवाओं में इक मधुर संगीत है,
तू फिर से गुनगुनायी क्या?
ओह! तारे अचानक टिमटिमाने लगे,
शायद तू गम में मुस्कुरायी क्या ?
चांद भी निकलने लगा अब,
तूने चेहरे से जुल्फें हटायीं क्या?
मेरे हिचकियों का सिलसिला यूं है,
शायद फिर से तुझे मेरी याद आयी क्या?
~AnuRag
बहुत सुन्दर👌
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Thank you 😊
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👌👌
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Thank you Era 😊
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😊😊
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बहुत बढ़िया
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Dhanyawad sir.
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वाह😍😍😍
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धन्यवाद् 🙏😊😊
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Wah
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Dhanyawad 🙏
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बहुत अच्छा लिखा आपने
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बहुत बहुत धन्यवाद् आपका ।
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Ohhh….good one Anurag👍
Keep writing🌼
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Thanks Ankit for your appreciation.😊
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Your welcome🌼
Stay tuned…
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सुंदर ।
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Thank you 😊
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🤗
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खूबसूरत सवालों से भरी मन के भावों को दर्शाती बेहतरीन रचना।👌👌
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बहुत बहुत धन्यवाद् 🙏
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