नारी ।

pc: facebook Nari Samman

हर रिश्तें को वो समझती है,
बाखूबी उन्हें निभाती है।
दर्द कितने भी हो उसको,
फिर भी वो मुस्कुराती है।

मां किसी की,और बहन किसी की,
किसी की पत्नी बनकर साथ निभाती है।
वो नारी है देवीस्वारुप ।
जो दूसरों की खातिर,
अपना जीवन भी वारी है।।

पर विडम्बना है इस समाज की,
है सम्मान नहीं उसके लाज की।
समझते चीज उसे भोग-विलास की,
कद्र नहीं उसके अहसास की ।

करते झूठी बातें सर्वाधिकार की,
फिकर नहीं उसके ज्जबात की ,
और बात करते हैं नारी उत्थान की ।
नियत साफ़ नहीं इंसान की,
फिर दोष देते उसके परिधान की ।

समाज में बराबर दर्जे की,
वो पूरी हकदार हैं।
ये कोई अहसान नहीं,
यह उसका अधिकार है।

जाने कब हम समझेंगे,
नारी इस समाज की आधार है।
ये समाज शायद भूल गया ,
जरुरत पड़ने पर,
वो दुर्गा चंडी की अवतार भी है ।।

2020© AnuRag

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